अशांति दुनिया की सबसे बड़ी समस्या

By | August 11, 2025

शांति सेना का राष्ट्रीय शिक्षण शिविर सम्पन्न

सर्व सेवा संघ एवं नई तालीम समिति के संयुक्त तत्वावधान में महादेव भाई भवन, सेवाग्राम , वर्धा, महाराष्ट्र में 3 से 6 अगस्त , 2025 को आयोजित शांति सेना का राष्ट्रीय शिक्षण शिविर सफलता पूर्वक संपन्न हो गया । इस शिविर में कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, बिहार ,पश्चिम बंगाल, गुजरात एवं राजस्थान आदि 10 राज्यों के लगभग 60 लोगों ने भाग लिया। शिविर का उद्घाटन चंदन पाल , अध्यक्ष सर्व सेवा संघ ने किया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता सुश्री भाविनी पारेख, ब्रह्मविद्या मंदिर,पवार ने किया । इस शिविर में गौरांग चंद्र महापात्रा, महामंत्री सर्व सेवा संघ,शेख हुसैन प्रबंधक ट्रस्टी , सर्व सेवा संघ, प्रवीणा देसाई, ब्रह्म विद्या मंदिर, पवनार, भाविनी पारेख ,ब्रह्म विद्या मंदिर, मैथिली विसी, ब्रह्म विद्या मंदिर, चिन्मय मिश्र, अध्यक्ष, मध्य प्रदेश सर्वोदय मंडल, संजय सिंह, मंत्री , गांधी स्मारक निधि, नई दिल्ली , प्रो. हेमंत भाई शाह , अहमदाबाद , प्रभाकर पुसदकर , मंत्री, नई तालीम समिति, अतुल शर्मा, लोकशाही अभियान, वर्धा, तापस दास, नदी बचाओ जीवन बचाओ, कोलकाता , वीरेंद्र कांतिकारी, संयोजक, भारत परिवार ,अलवर, राजस्थान, सावित्री बहन एवं मृत्युंजय भाई, वर्धा, किशोर भाई, निवेदिता निलयम , जालंधर नाथ, विश्व शांति यात्री आदि मार्गदर्शन के लिए उपस्थित थे। शिविर का संचालन एवं संयोजन अशोक भारत , संयोजक, सर्व सेवा संघ प्रकाशन एवं शांति सेना ने किया। शिविर के सफल आयोजन में अविनाश काकडे, मंत्री, सर्व सेवा संघ, सचिन उगले, जीवन भाई, विक्रांत भाई, लोखंडे भाई, गंगा ताई , मनीष भाई, बैना बहन एवं दिनकर भाई आदि ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। भूपेश भूषण , मध्य प्रदेश एवं डॉ प्रशांत, कर्नाटक का हार्दिक सहयोग शिविर के आयोजन में मिला।

शिविर में शांति सेना अतीत से वर्तमान तक, महात्मा गांधी एवं विश्व शांति, अहिंसक संवाद (नन वायलेंट कम्युनिकेशन), गांधी की आर्थिक नीति, ग्राम स्वराज, एकादश व्रत, सर्वधर्म समभाव, नई तालीम एवं खादी आदि विषय पर चर्चा हुई ।

चंदन पाल ने कहा कि शांति सेना की आज आवश्यकता क्यों, यह समझना बहुत जरूरी है। आज दुनिया की सबसे बड़ी समस्या अशांति है। हिंसा की संस्कृति विनाश की संस्कृति है। हमें अहिंसा की संस्कृति विकसित करनी है। यही शांति सेना का कार्य है। गांधी के शांति सेना के विचार को विनोबा ने आगे बढ़ाया । शांति सेना जाति, धर्म, लिंग भेदभाव से मुक्त सेना है । भूदान आंदोलन के दौरान इसकी स्थापना 1957 में केरल में हुई थी । शांति सेना सेवा की सेना है। विशेष प्रस्थिति में अपनी जान जोखिम में डालकर भी शांति के लिए काम करने वाली सेना है ।

शांति सेना का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। शांति सेना ने सांप्रदायिक हिंसा में अनेक स्थानों पर शांति – सद्भावना कार्य किया । नागालैंड , चंबल, मुसहरी , मुजफ्फरपुर , बिहार आदि स्थानों पर शांति सेना के अभूतपूर्व कार्य हुए।बाढ़, सुपर साइक्लोन , सुनामी आदि प्राकृतिक आपदा के समय राहत एवं सेवा का कार्य किया है।उन्होंने कहा कि उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन एक शांति सैनिक के रूप में बांग्लादेश के शरणार्थी शिवरों से शुरु किया। उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण शांति सद्भावना का कार्य 2012 में कोकराझार असम में हुआ । बोडो और मुसलमानों के बीच हुई हिंसा में 114 लोगों की जान गई और लाखों लोग बेघर हुए। लाखों लोग शरणार्थी शिविर में रहने के लिए बाध्य हुए ,हजारों मकान ध्वस्त कर दिए गए। वहां 5 वर्ष तक राधा भट्ट तात्कालिक अध्यक्ष, सर्व सेवा संघ और गांधी शांति प्रतिष्ठान के मार्गदर्शन में शांति सद्भावना का कार्य चला। इसमें देश भर के सर्वोदय कार्यकर्ताओं का सहयोग प्राप्त हुआ। आज वहां शांति है और वहां के लोगों गांधी शांति संघ की स्थापना कर शांति सद्भावना का काम कर रहे हैं।

सावित्री बहन एवं मृत्युंजय भाई ने अहिंसक संवाद की प्रक्रिया के बारे में बतलाया । उन्होंने कहा कि संवाद के लिए दो महत्वपूर्ण बातें हैं सुनना और बोलना । बयान एवं मूल्यांकन में फर्क है , यह समझना जरूरी है। उन्होंने कहा ऑब्जरवेशन, फीलिंग, नीड एवं एंड रिक्वेस्ट अहिंसक संवाद के महत्वपूर्ण अंग हैं। उन्होंने इसके बारे में विस्तार से बताया।
गांधी की अर्थ नीति पर बोलते हुए प्रो. हेमंत भाई शाह ने कहा गांधी ने स्वदेशी की बात की। जितना दूर से कोई सामान आएगा उतना पर्यावरण बिगरेगा । गांधी विचार का स्तंभ है अहिंसा। भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य सबको उपलब्ध होना चाहिए । स्वदेशी अहिंसक समाज रचना के लिए आवश्यक है। हर एक आदमी के स्वराज के लिए समाज रचना और अर्थ रचना सभी अहिंसा पर आधारित होना चाहिए। इसके लिए गांधी ने ट्रस्टीशिप का सिद्धांत दिया। जिसका मतलब है समाज से कमाओ और समाज में वापस करो। अगर यह स्वेच्छा से नहीं हो तो उसे कानून बनाकर वापस करना। गांव में रहने वालों की आबादी घट रही है। शहरों की आबादी बढ़ रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि गांव का विकास नहीं हुआ । विकास किसका, किस प्रकार का, कौन सा विकास यह समझना जरूरी है। जिन लोगों के पास सत्ता है , पैसा है, वे सोचते हैं कि वे बुद्धिमान भी है, जबकि हकीकत इसके विपरीत है। हथियार का निर्यात करना युद्ध का निर्यात करना है। अमेरिका और यूरोप युद्ध का निर्यात कर रहे हैं। अमेरिका के किसानों को 5 -6 लाख रुपया सब्सिडी मिलता है। स्पर्धा किसके बीच चाहते हैं। नव उदारवादी अर्थव्यवस्था में हम कहां बैठते हैं, यह देखना चाहिए।

तापस दास ने कहा कि इकोलॉजी इज परमानेंट इकोनामी। कौन सी पार्टी गांव का विकास कर रहा है , यह देखना चाहिए। राजनीतिक पहल करने की आवश्यकता है। आज नदियों की स्थिति क्या है? 5500 डैम बने उनमें कितना लाभ, कितना नुकसान हुआ इसका आकलन आज तक सरकार ने नहीं किया । फिर भी नए-नए बांध बनने की योजना सरकार ला रही है। हम एक ऐसी विकास के मार्ग पर चल पड़े हैं जिसमें नदियां सूख रही हैं, जंगल खत्म हो रहे हैं, जमीन बंजर हो रहा है। नदियों को हमने कचरा ढोने वाला नालों में तब्दील कर दिया है।

डॉ उल्लास जाजू ने ग्राम स्वराज्य पर बात रखी। उन्होंने कहा कि पहले स्वतंत्र गांव का गुलाम देश बना। बाद में अंग्रेजों के समय गुलाम देश का गुलाम गांव बना। आजादी के बाद देश आजाद हुआ। अब आजाद देश का गुलाम गांव है । समूह के नियम होते हैं । नियम को चलाने वाला शासक होता है। शासन सत्ता, अर्थशास्त्र सत्ता ,धर्म सत्ता आदि सत्ता के प्रकार है । सत्ता जब केंद्रित होती है तो शोषण बढ़ता है। सत्ताधारी सत्ता को चलाता है। सत्ता हमेशा भ्रष्ट बनती है। समता , बंधुता आदि आध्यात्मिकता का गुण सत्ता में आ जाए तब वे ट्रस्टी बनते हैं । भाईचारा को विकसित करना जरूरी है। समता मूलक स्वतंत्रता देने वाली छोटी-छोटी समाज की इकाई है गांव। गांव की इकाई है घर । सत्ता कैसे बदले ? चुनाव अशुद्ध साधन है। हम हमारे निर्णय स्वयं करें। बिना विरोध निर्णय या सर्व सम्मति से निर्णय। प्रेम -भाईचारे का रिश्ता बनता है तो शांति आती है। धीरे-धीरे बाजार मुक्ति की तरफ बढ़े। व्यवहार शुद्धि आवश्यक है। प्रेम जब अनसक्ति रूप लेता है तो बृहद प्रेम की तरफ बढ़ेंगे ।
चिन्मय मिश्र ने कहा की हिंसा के सागर में गांधी द्वीप हैं, प्रकाश स्तंभ हैं। युद्ध हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है। गांधी ने कहा सत्य ही ईश्वर है। सत्य और अहिंसा राज्य के लिए भी है। क्रांति परिस्थितियों से निर्मित होती है और अपना नेता स्वयं चुन लेती है । सत्याग्रही लोकमत के खिलाफ लड़ सकता है। दुर्बलता से सामर्थ पैदा करना हो, तो गांधीजी ने जो मार्ग बताए गए हैं उसके सिवा कोई चारा नहीं । युवा दुनिया की सब चीज पढ़े। समता प्रकृति का गुण है।

भाविनी पारेख ने कहा कि अहिंसा यानी अध्यात्म। सभी धर्म का सार एकतत्व है। इसका अर्थ है दूसरों के साथ अपने जैसा व्यवहार करना। सत्य यानी मन, वचन , कर्म की एकता। बिना श्रम के खाना यानी चोरी के खाना। ब्रह्मचार्य का तात्पर्य मन की वासना का खत्म होना है। अपरिग्रह यानी कम से कम संग्रह में रहने आना अर्थात स्वेच्छा से गरीबी का जीवन जीना। शरीर श्रम आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है । अस्वाद का अर्थ है सुस्वादी भोजन आस्वाद तरीके से खाना। भय का मुख्य कारण मृत्यु का डर है। भेदभाव से मुक्त हुए बिना अहिंसा की साधना संभवनहीं।

संजय सिंह ने कहा कि किसी धर्म के बारे में निंदा करना गलत है, यह अशोक सम्राट के शिलालेख में लिखा है। सत्ता के लिए धर्म का उपयोग करना गलत है। अपना जीवन पवित्रता से जिए। आज धर्म की आड़ में सबको कंट्रोल करने की कोशिश हो रही है। धर्म के साथ राजनीति के जोड़ने से बड़ा नुकसान हो रहा है। सभी धर्म सिखाता है लोगों से प्यार करना। महाभारत में भीष्म पितामह से जब पूछा गया कि धर्म के लक्षण क्या है, हिंसक व्यक्ति कौन है तो उन्होंने कहा जिसके ह्रदय में भूखे व्यक्ति को देखकर करुणा का भाव नहीं उत्पन्न हो ,वह हिंसक व्यक्ति है, अधार्मिक व्यक्ति है। प्रेम, करुणा, मैत्री ,निर्भयता ही धर्म है। गांधी, विनोबा ने सभी धर्म के सार का प्रयोग किया। सामाजिक काम के लिए एकादश व्रत अपनाना जरूरी है । गांधी ने साधन शुद्धि की बात की थी , जिसका पालन अहिंसक समाज निर्माण के लिए आवश्यक है।\

मैथिली विसी ने कहा की बिनोवा जी ने गांधी जी के काम को आगे बढ़ाया। उन्होंने सर्वधर्म समभाव के लिए चार बातें आवश्यक बताइ। पहला स्वधर्म में निष्ठा, दूसरा अन्य धर्मों के प्रति आदर का भाव, तीसरा सर्व धर्म सुधार और चौथा अधर्म का विरोध। सब धर्म पंथ से बंध गए हैं। हमें अपना हृदय विशाल बनाना चाहिए। बिनोवा ने कहा था कि धर्म को मंदिर – मस्जिद से निकाल कर बाजार में लाना चाहिए। पंकज जी बेतिया ने भारत की गंगा जमुनी संस्कृति के कई प्रेरक प्रसंग का उल्लेख किया। उन्होंने कहा जब तुलसी दास जी को अवधी में रामायण लिखने के लिए विरोध हुआ तो उन्होंने मस्जिद में शरण लिया। रसखान कृष्ण भक्त थे। रामायण जैसी उत्कृष्ट ग्रंथ की रचना अकबर के शासन काल में हुआ। ऐसे अनेक उदाहरण हमें इतिहास में पढ़ने को मिलता है। आज जो भेद बताया जा रहा है उसका तथ्य से कोई मेल नहीं है।

प्रभाकर पुसदकर ने नई तालीम के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि प्राथमिक शिक्षा श्रम आधारित एवं उद्योग मूलक होनी चाहिए। नई तालीम में काम से ज्ञान और ज्ञान से काम। उन्होंने कहा अभी जो शिक्षा चल रही है वह मैकाले की शिक्षा है। मैकाले की शिक्षा राज्य को चलाने के लिए है ,जबकि गांधी की शिक्षा समाज को चलाने के लिए है। नई तालीम में अहिंसक, समता मूलक और न्यायपूर्ण व्यवस्था की बात है। नई तालीम में मस्तिष्क, हृदय और हाथ की बात है। इसमें स्वास्थ्य, सद्भाव, मानवता की बात है।

वीरेंद्र क्रांतिकारी ने कहा कि बिना कारण कुछ नहीं होता। आज जो युद्ध हो रहा है उसके पीछे भी कारण है। युद्ध का मुख्य कारण संसाधनों पर कब्जा करना है। जाति समाज को तोड़ रहा है। समाज से ज्यादा बड़ा कोई प्रयोगशाला नहीं हो सकता। गांधी के सिवा कोई रास्ता नहीं हो सकता।

अतुल शर्मा ने खादी के बारे में बताया। उन्होंने कहा की खादी अपने स्वावलंबन, पर्यावरण और रोजगार का जरिया है । चरखा गांव की आर्थिक स्वतंत्रता का प्रतीक है। यह एक विचार पद्धति एवं आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की ओर देखने की दृष्टि है । खादी की अर्थव्यवस्था में 80% लोगों के पास जाता है और 20% ही व्यवस्था पर खर्च होता है। खादी आर्थिक लोकशाही का मध्यम एवं संपूर्ण जीवन की योजना है । अपने सुरक्षित भविष्य एवं दुनिया के भविष्य के लिए खादी आवश्यक है । खादी का इतिहास बहुत पुराना है । आज से 5000 वर्ष पूर्व भी लोगों को इसकी जानकारी थी। किशोर भाई ने कहा कि एक व्यक्ति को औसतन 20 से 25 मीटर वस्त्र की आवश्यकता एक वर्ष में होती है । यदि व्यक्ति प्रतिदिन 20 मिनट कताई करें तो अपनी वस्त्र की आवश्यकता पूरा कर सकता है। विनोबा ने शांति सेना के लिए निर्भयता आवश्यक गुण बताया। इसके लिए सादगी, स्वाभिमान एवं स्वावलंबनका अनिवार्य शर्त है । एक किलो कपास में तीन मीटर कपड़ा बनता है। एक परिवार के लिए औसतन 50 किलो कपास की आवश्यकता है। उन्होंने चरखा चला कर सूत काटने का प्रशिक्षण शिवरार्थियों को दिया, जिसे बहुत पसंद किया गया।

शिविर के दौरान 5 अगस्त को शांति मार्च निकाली गई। यह शांति मार्च अंबेडकर प्रतिमा से गांधी प्रतिमा वर्धा तक निकाली गई, जो बाद में सर्व धर्म प्रार्थना सभा में तब्दील हो गई। सर्वधर्म प्रार्थना का संचालन जालंधर भाई ने किया। प्रार्थना सभा को चंदन पाल एवं अशोक भारत ने संबोधित किया । इस कार्यक्रम में सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान के सचिव विजय ताम्बे , संजय पालीवाल, सुषमा, अतुल शर्मा, अविनाश काकडे आदि वर्धा के अनेक सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। प्रार्थना सभा में एक प्रस्ताव पारित कर इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों के हो रहे नरसंहार को तत्काल रोकने, रूस – यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने तथा दुनिया भर में हो रहे तमाम तरह के हिंसक कार्रवाई, युद्ध को तत्काल समाप्त कर शांतिपूर्ण समाधान की अपील विश्व के शासन अध्यक्षों से की गई।

समापन सत्र की मुख्य अतिथि सुश्री प्रवीण देसाई थी और गौरांग चंद्र महापात्रा विशेष अतिथि थे। प्रवीण देसाई ने कहा की गांधी का विरोध जो लोग कर रहे हैं, वह इसलिए कर रहे हैं कि उनको गांधी से मिलने का अवसर नहीं मिला। गांधी का व्यक्तित्व ऐसा था कि जो लोग उससे मिलते थे उनमें खुद ही परिवर्तन हो जाता था। उन्होंने कहा कि आपने कांटों की राह पर चलना तय किया है। दुनिया को बदलने की ताकत गांधी विचार में है । गौरंगचंद महापात्र ने कहा कि जगह-जगह शांति टोली बनाकर काम शुरू करना चाहिए और जब कभी विशेष परिस्थिति हो तो वहां पहुंचकर शांति सद्भावना का कार्य करना चाहिए। इसके लिए शांति सेना को टीम तैयार करना चाहिए।

शिविर के दौरान सर्वधर्म प्रार्थना, योग एवं प्राणायाम, श्रम कार्य ,सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि नियमित रूप से आयोजित किए गए। जिसका शिवरार्थियों पर अच्छा प्रभाव पड़ा । शिविर के दौरान शिवरार्थियों को जालंधर भाई ने क्रांति गीत सिखाया । सांस्कृतिक कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण भारत की संतान रहा।
शिविर के अंतिम सत्र में शिवरार्थियों ने अपने अनुभव साझा किया। शिविरार्थियों में कर्नाटक की खुशी, भूमिका, हर्षिता, मारुति, प्रज्ज्वल, तेजस, मध्य प्रदेश की आसमां आदिवासी, खुशी पटेल, श्रेया शर्मा, , विवेक यादव, झारखंड की रुपा कुमारी, उमेश तुरी, बिहार की कीर्ति, तन्नु, आकांक्षा, बंगाल से अभिषेक राय , महाराष्ट्र से अशोक पगार, रमेश नामदेव, भाग्यश्री, वैशाली, मयूर, शांतनु आदि की भागीदारी सराहनीय रही।

शिविर के अंत में निम्नलिखित कार्यक्रम तय हुई।

  1. देश में जगह-जगह शांति केंद्र खोलना, उसके माध्यम से शांति – सद्भावना के कार्य को आगे बढ़ाना
  2. सर्व धर्म प्रार्थना का सार्वजनिक स्थानों पर नियमित रूप से आयोजन करना ।
  3. एक राष्ट्रीय शिविर का आयोजन आने वाले दिनों में करना
  4. अगले वर्ष एक शांति सम्मेलन आयोजित करना
  5. बुद्ध से गांधी तक सारनाथ ,वाराणसी से सेवाग्राम, वर्धा, महाराष्ट्र तक सद्भावना शांति साइकिल यात्रा का आयोजन करना।
    इस कार्य को करने के लिए एक समिति का गठन किया गया है जिसमें निम्नलिखित लोग शामिल हैं। 1. श्री चंदन पाल, 2. संजय सिंह 3.अशोक शारण 4. वीरेंद्र क्रांतिकारी 5. तापस दास 6. भूपेश भूषण 7. डॉ. प्रशांत एवं 6. अशोक भारत

अशोक भारत
शांति सेना
मो. 8709022550

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