आज दुनिया युद्ध, हिंसा और आतंकवाद की आग में झुलस रही है, विनाश की ओर बढ़ रही है ।
महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘यह सभ्यता दूसरों को नाश करने वाली है और खुद भी नाशवान है।’
आज से 115 वर्ष पूर्व महात्मा गांधी ने जो कहा था , वह आज हम सब अनुभव कर रहे हैं । उन्होंने
दुनिया में स्थाई शांति के उपाय बताएं थे। उन्होंने शांति सेना का विचार प्रस्तुत किय था, जिन पर
उन्हें ज्यादा कार्य करने का अवसर नहीं मिला ।
गांधी जी के शांति सेना के विचार को विनोबा जी ने आगे बढ़ाया । अपनी भूदान यात्रा के दौरान
कोझीकोड, केरल में 11 जुलाई , 1957 को उन्होंने पहली बार शांति सेवा का विचार लोगों के सामने
रखा ।
उन्होंने कहा कि एक बड़ी भारी शांति सेना की स्थापना हमें करनी है। यह सेना ऐसी हो , जो निरंतर
घूमती हुई लोगों की सेवा में जुटी रहे, लोगों पर नैतिक असर डालते रहे और हिंसा को कभी आगे आने
का मौका न दे। शांति सेना के सैनिक सत्याग्रह के लिए तैयार होने चाहिए। सर्व सामान्य समय में
समाज की सेवा और विशिष्ट मौके पर अपना सिर समर्पण करके शांति लाने की तैयारी, यह इस सेना
का काम है। जयप्रकाश नारायण ने भी पिछली शताब्दी में तरुण शांति सेवा का गठन किया था
आज जब हमारे सामने विषम परिस्थिति है । शांति सेना का विचार हमारे लिए तारक हो सकता है ।
इस पृष्ठभूमि शांति सेना के काम को फिर से शुरू करना आज वक्त की मांग है।
गांधी स्मारक निधि , राजघाट , नई दिल्ली के सहयोग से एक प्रारंभिक बैठक 7 एवं 8 सितंबर,
2024 को गांधी स्मारक निधि, राजघाट नई दिल्ली में बुलाई गई है। इस बैठक में सीमित साथियों को
ही बुलाया गया है। इस बैठक में कई वरिष्ठ गांधीवादी मार्ग दर्शन के लिए उपस्थित रहेंगे। बैठक में
ठहरने एवं भोजन की व्यवस्था आयोजक के तरफ से रहेगी। मार्ग व्यय की व्यवस्था स्वयं या मित्रों की
मदद से करनी होगी।
आप इस बैठक में सादर आमंत्रित है।
निवेदक
अशोक भारत (मो.8709022550)
वरुण पंचाल (मो. 9343485726)